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Wednesday, January 27, 2010


   " कितनी नादाँ है सागरकी लहरे जो चट्टानों से टकराती है,
बिखरकर टूट जाती है फिर भी एक हो जाती है,
 अपनी अपेक्षाओ को मिटने नहीं देती वो, और रेत  मे मेल जाती है l"
 बिखरना, लडखडाना संभालना. और फिर लडखडाना .... ये इस जीवनकी रीत है.... खुद संभलकर ही कुछ पाया जा सकता है. कुछ ख़तम होने के बाद ही नयी "रचना" होती है! ब्रह्मा,विष्णु और महेश .. एक सृष्टि का रचयिता है, दूसरा पालनकर्ता है और तीसरा सृष्टि का विनाश्कर्ता  है ! पर हमे तीनो की जरुरत है, क्योंकी अगर हमे विष्णु इस सृष्टि मई लाये है तो ब्रह्म्हाजी हमारा पालन करेंगे और हमारा जनम ही इसलिए हुआ है की शिवजी ने पिछली दुनिया का विनाश किया है ! अगली दुनिया की रचना भी इसलिए होगी क्योकि इस सृष्टि का विनाश होगा !
    हमारा जीवन सागरकी लहरों की तरह होना चाहिए! सागरकी लहरे सागर से उठकर लहराती हुई समंदर की शोभा बढ़ाते हुए किनारे तक आती है, किनारे पर आकर अपने आपको बीखैर देती है मगर वो अपना जीवन और धर्म नहीं भूलती ! वो फिर से एक होकर समंदर मई समां जाती है और फिर से समंदर से लहर के रूप मई उठकर फिर से किनारे पर आती है ! बस यही बात हमें याद रखनी है! जीवन अगर संदर है तो उसकी लहरे हम है, हमे अपना जीवन लहरों की तरह जीकर इस जीवन की शोभा बढ़नी है ! बीखरने के बाद भी अपने आपको फिर से उठाना है और फिर से अपना जीवन जीना है ! हम जायेंगे, कोई दूसरा आएगा फिर तीसरा बस... समंदर की लहरोंकी तरह जीकर भगवन ने हमें जो ये जीवन दिया है उसकी शोभा बढ़नी है!
    में आशा करता हूँ की आपको मेरा ये नया हिंदी ब्लॉग पसंद आएगा .. और आप उसको मेरे साथ शेर  करेंगे! शुक्रिया..

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